‘ज़िहाल-ए-मिस्कीन’ (Zihaal-e-Miskin): अर्थ, इतिहास, और गीत के बोल (lyrics)

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‘ज़िहाल-ए-मिस्कीन’ (Zihaal-e-Miskin) एक ऐसा शब्द है, जो भारतीय साहित्य, सूफी कविता और बॉलीवुड गीतों में अपनी अनूठी छाप छोड़ चुका है। चाहे अमीर खुसरो की अमर रचना हो या गुलजार द्वारा लिखित फिल्मी गीत, इस वाक्यांश ने प्रेम, दर्द और विरह की गहराई को बखूबी बयान किया है। इस लेख में हम ‘ज़िहाल-ए-मिस्कीन’ का अर्थ, इसका ऐतिहासिक महत्व, इसके गीत के बोल और उनका हिंदी अनुवाद विस्तार से जानेंगे।

ज़िहाल-ए-मिस्कीन (Zihaal-e-Miskin): अर्थ, इतिहास, और गीत के बोल (lyrics)

ज़िहाल-ए-मिस्कीन का अर्थ (Zihal e Miskin Meaning)

  • ज़िहाल-ए-मिस्कीन फारसी और ब्रज भाषा का मिश्रण है।
  • 'ज़िहाल' (Zehaal) का अर्थ है 'हालत' या 'स्थिति'।
  • 'मिस्कीन' (Miskin) का अर्थ है 'गरीब', 'दुखी' या 'असहाय' व्यक्ति।
  • पूरे वाक्यांश ‘ज़िहाल-ए-मिस्कीन’ का शाब्दिक अर्थ है: ‘दुखी की हालत’ या ‘असहाय की दशा’।

यह वाक्यांश आमतौर पर किसी की विपत्ति, दर्द या प्रेम में बिछड़ने की अवस्था को दर्शाने के लिए प्रयोग होता है.

इस वाक्यांश की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह सिर्फ शब्दों का मेल नहीं, बल्कि दो संस्कृतियों—फारसी और भारतीय—के साहित्यिक भावों का संगम भी है। अमीर खुसरो की प्रसिद्ध ग़ज़ल ‘ज़िहाल-ए-मिस्कीं मकुन तगाफ़ुल’ में यह पंक्ति प्रेमी की उस गहरी वेदना को दर्शाती है, जब वह अपने प्रिय से अपने दर्द और तड़प को नज़रअंदाज़ न करने की गुहार लगाता है।

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मकुन, तगाफुल, रंजिश: शब्दार्थ

  • मकुन (Makun): फारसी शब्द, अर्थ – ‘मत कर’ या ‘न करो’।
  • तगाफुल (Taghaful): अनदेखा करना, उपेक्षा करना।
  • रंजिश (Ranjish): नाराजगी, दुख या शिकायत।
  • मकुन-ब-रंजिश: नाराजगी या शिकायत मत करो।


ज़िहाल-ए-मिस्कीन: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

‘ज़िहाल-ए-मिस्कीन’ अमीर खुसरो द्वारा रचित एक प्रसिद्ध ग़ज़ल है, जिसमें फारसी और ब्रज भाषा का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। खुसरो की इस रचना में प्रेम, दर्द, विरह और आध्यात्मिकता का गहरा भाव है। इस ग़ज़ल को बाद में गुलजार ने फिल्म ‘गुलामी’ (1985) के लिए रूपांतरित किया, जिसे लता मंगेशकर और शब्बीर कुमार ने स्वर दिया था।

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ज़िहाल-ए-मिस्कीन के गीत के बोल (Zihaal e Miskin Lyrics)

अमीर खुसरो की मूल ग़ज़ल

ज़िहाल-ए-मिस्कीं मकुन तगाफुल,

दुराये नैना बनाये बतियां।

कि ताब-ए-हिज्रां नदारम ऐ जां,

न लेहो काहे लगाये छतियां।

हिंदी अनुवाद:

मेरी बेबसी को अनदेखा मत करो,

आंखें चुराकर बातें मत बनाओ।

जुदाई की तपन से मेरी जान निकल रही है,

मुझे अपने सीने से क्यों नहीं लगा लेते।


फिल्मी गीत (गुलामी, 1985) के बोल

ज़िहाल-ए-मिस्कीं मकुन ब-रंजिश,

बहाल-ए-हिज्रा बेचारा दिल है।

सुनाई देती है जिसकी धड़कन,

तुम्हारा दिल या हमारा दिल है।

हिंदी अर्थ:

मेरे दर्द को नाराजगी में मत बदलो,

जुदाई में मेरा दिल बेचारा हो गया है।

जिसकी धड़कन सुनाई देती है,

वो तुम्हारा दिल है या मेरा दिल है।


Zihaal e Miskin Lyrics in Hindi (फिल्मी गीत)

ज़िहाल-ए-मिस्कीं मकुन ब-रंजिश,

बहाल-ए-हिज्रा बेचारा दिल है।

सुनाई देती है जिसकी धड़कन,

तुम्हारा दिल या हमारा दिल है।


टूटे दिल को जोड़ें कैसे,

ये बताते जाओ।

जिंदा रहने की बस हमको,

एक वजह दे जाओ।


ज़िहाल-ए-मिस्कीन का भावार्थ और गहराई

यह ग़ज़ल और गीत प्रेमी के दर्द, विरह और उसकी बेबसी को दर्शाते हैं। इसमें प्रेमी अपनी प्रेमिका से कहता है कि उसकी हालत को नजरअंदाज न करे, उसकी जुदाई में उसका दिल बेचैन है। यह सिर्फ एक प्रेम कहानी नहीं, बल्कि सूफी दर्शन से भी जुड़ा है, जिसमें प्रेम को ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग बताया गया है।


अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

ज़िहाल-ए-मिस्कीन का अर्थ (zihaal e-miskin meaning):

दुखी या असहाय की दशा/स्थिति।

जिहाले मस्ती मुकुंद रंजिश Lyrics in Hindi:

यह पंक्तियां अमीर खुसरो की ग़ज़ल का हिस्सा हैं, जिनका भावार्थ है – “मेरी हालत को अनदेखा मत करो, नाराज मत हो, जुदाई में दिल बेचारा है।”

मकुन-ब-रंजिश का अर्थ:

नाराज मत हो, शिकायत मत करो।

जिहाल का अर्थ:

हालत, स्थिति या अवस्था।

मकुन का अर्थ:

मत कर, न करो।

जिहाले मिस्कीन मकुन तग़ाफ़ुल:

मेरी बेबसी को अनदेखा मत करो।


Zihaal e Miskin: आधुनिक संदर्भ

आज भी ‘ज़िहाल-ए-मिस्कीन’ गीत कई रूपों में लोकप्रिय है। हाल ही में इस पर आधारित नए गाने भी आए हैं, जिनमें पुराने भावों को नए अंदाज में पेश किया गया है। सोशल मीडिया पर भी यह गीत और इसके अर्थ खूब साझा किए जाते हैं, जिससे इसकी लोकप्रियता और गहराई का अंदाजा लगाया जा सकता है।


निष्कर्ष

‘ज़िहाल-ए-मिस्कीन’ सिर्फ एक गीत या कविता नहीं, बल्कि प्रेम, दर्द और इंसानियत की गहराई को छूने वाला भाव है। इसमें छुपा संदेश है कि किसी के दर्द को नज़रअंदाज न करें, उसकी पीड़ा को समझें और प्रेम में संवेदना बनाए रखें। अमीर खुसरो की यह रचना और बॉलीवुड गीत दोनों ही पीढ़ियों को जोड़ने का काम करते हैं और आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। 

 

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