रामदेव के सहयोगी का बड़ा खेल, एक ही मालिक की तीन कंपनियों ने मिलकर जीता करोड़ों का सरकारी टेंडर!

देहरादून: बाबा रामदेव के करीबी सहयोगी और पतंजलि आयुर्वेद के सह-संस्थापक आचार्य बालकृष्ण एक बार फिर चर्चा में हैं। इस बार वजह उत्तराखंड पर्यटन विभाग का एक बड़ा प्रोजेक्ट है, जिसे एक चौंकाने वाली बोली प्रक्रिया के बाद उनकी ही कंपनियों को दिया गया है। एक गहन जांच में यह सामने आया है कि इस प्रोजेक्ट के लिए बोली लगाने वाली तीनों कंपनियां आचार्य बालकृष्ण द्वारा नियंत्रित थीं, जो निविदा नियमों का सीधा उल्लंघन है।

Portrait of Acharya Balkrishna and Baba Ramdev.

आखिर क्या है मामला?

दरअसल, अंग्रेजी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, उत्तराखंड पर्यटन विकास बोर्ड (UTDB) ने दिसंबर 2022 में मसूरी के पास स्थित जॉर्ज एवरेस्ट एस्टेट में साहसिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए एक निविदा जारी की थी। 

इस प्रोजेक्ट में 142 एकड़ की जमीन पर विभिन्न साहसिक गतिविधियां जैसे पैराग्लाइडिंग, बंजी जंपिंग, रॉक क्लाइंबिंग, हेलीकॉप्टर संचालन और हॉट एयर बैलूनिंग की अनुमति थी। उत्तराखंड सरकार ने जॉर्ज एवरेस्ट एस्टेट पार्क को विकसित करने के लिए एशियाई विकास बैंक (ADB) से 23.5 करोड़ रुपये का कर्ज लिया था।

इस रकम का इस्तेमाल 2019 से 2022 के बीच इस पूरे क्षेत्र को पर्यटन के लिए तैयार करने में किया गया, जिसमें पार्क, रास्ते, एक हेलीपैड, संग्रहालय, कैफे और अन्य सुविधाएं विकसित की गईं। 

गौरतलब यह है की करोड़ों का खर्च करने के पश्चात भी सरकार ने यही पूरी जमीन मात्र 1 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष के किराये पर कंपनी को दे दी. बारामासा यूटयूब चैनल के extra cover के एपिसोड 89 में अनुसार जॉर्ज एवरेस्ट की 142 एकड़ जमीन, जिसकी सर्किल रेट के हिसाब से कीमत लगभग 2,700 करोड़ और बाजार मूल्य इससे कई गुना अधिक है, उसे मात्र 1 करोड़ सालाना किराए पर 15 साल की लीज़ पर दे दिया गया

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निविदा प्रक्रिया का उल्लंघन: तीन बोलियां, एक ही मालिक

यह जमीन जिस “राजस एरोस्पोर्ट्स” नाम की कंपनी को दी गई, उस कंपनी के साथ दो अन्य कंपनी भी टेंडर प्रक्रिया में शामिल दिखी, लेकिन उनके अकाउंट्स में एक ही पता था: पतंजलि योगपीठ, बहादराबाद, हरिद्वार। कंपनियों के डायरेक्टर भी आपस में जुड़े हुए थे

जॉर्ज एवरेस्ट एस्टेट प्रोजेक्ट में हुई निविदा प्रक्रिया की जाँच से पता चलता है कि बोली लगाने वाली तीनों कंपनियों के बीच एक ही व्यक्ति, आचार्य बालकृष्ण, का नियंत्रण था। यह स्थिति सीधे तौर पर निविदा नियमों का उल्लंघन करती है, क्योंकि यह एक निष्पक्ष और प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया के बजाय मिलीभगत (collusion) का मामला प्रतीत होता है।

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कंपनियों की हिस्सेदारी का विवरण

निविदा में तीन कंपनियों ने भाग लिया:

1. राजस एयरोस्पोर्ट्स एंड एडवेंचर्स प्राइवेट लिमिटेड (Rajas Aerosports and Adventures Pvt Ltd):

  • यह कंपनी सबसे अधिक बोली (₹1 करोड़) लगाकर निविदा जीत गई।
  • निविदा के समय, आचार्य बालकृष्ण की इस कंपनी में 25.01% हिस्सेदारी थी।
  • टेंडर मिलने के बाद, अक्टूबर 2023 में, बालकृष्ण की हिस्सेदारी 69.43% तक पहुँच गई। 

यह बढ़ोतरी कई तरीकों से हुई:

  • दो अन्य बोली लगाने वाली कंपनियों—प्रकृति ऑर्गेनिक्स और भरुवा एग्री साइंस—ने मिलकर राजस में 17.43% हिस्सेदारी खरीदी।
  • बालकृष्ण के नियंत्रण वाली चार अन्य कंपनियों—भरुवा एग्रो सॉल्यूशन, भरुवा सॉल्यूशंस, फिट इंडिया ऑर्गेनिक, और पतंजलि रेवोल्यूशन—ने भी राजस में कुल 33.25% हिस्सेदारी हासिल की।

2. भरुवा एग्री साइंस प्राइवेट लिमिटेड (Bharuwa Agri Science Pvt Ltd):

  • इसने दूसरी सबसे बड़ी बोली (₹65 लाख) लगाई थी।
  • रिकॉर्ड्स के अनुसार, इस कंपनी में आचार्य बालकृष्ण की 99.85% हिस्सेदारी है।

3. प्रकृति ऑर्गेनिक्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (Prakriti Organics India Pvt Ltd):

  • इसने तीसरी सबसे बड़ी बोली (₹51 लाख) लगाई थी।
  • इस कंपनी में भी बालकृष्ण की 99.98% हिस्सेदारी है।

 टेंडर भरने की शर्तें बाद में ढीली कर दी गईं ताकि सिर्फ चहेती कंपनियां हिस्सा ले सकें, फिर भी तीन पात्र आवेदक वही निकले जो आपस में जुड़े थे. 

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निविदा नियमों का उल्लंघन क्यों हुआ?

निविदा प्रक्रिया का मुख्य उद्देश्य निष्पक्ष मूल्य निर्धारण (fair price discovery) सुनिश्चित करना होता है। इसके लिए यह जरूरी है कि बोली लगाने वाली सभी कंपनियां स्वतंत्र हों और एक-दूसरे के साथ मिलीभगत न करें।

  1. मिलीभगत के खिलाफ शपथ (Anti-Collusion Undertaking): बोली लगाने वाली सभी कंपनियों को एक शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करना होता है, जिसमें वे यह प्रमाणित करती हैं कि उन्होंने किसी अन्य बोलीदाता के साथ मिलकर काम नहीं किया है। इस मामले में, तीनों कंपनियों के मालिक आचार्य बालकृष्ण थे, जिससे यह शपथ पत्र निरर्थक हो जाता है।
  2. प्रतिस्पर्धा-विरोधी आचरण (Anti-competitive Conduct): जब एक ही व्यक्ति या संस्था तीन अलग-अलग कंपनियों के माध्यम से बोली लगाता है, तो यह एक तरह की दिखावटी प्रतिस्पर्धा होती है। सबसे ऊंची बोली हमेशा उसी व्यक्ति द्वारा नियंत्रित कंपनी की होती है, जबकि कम बोलियां लगाने वाली कंपनियां सिर्फ प्रतिस्पर्धा दिखाने के लिए उपयोग की जाती हैं। इससे यह सुनिश्चित हो जाता है कि प्रोजेक्ट उसी समूह को मिलेगा, भले ही कोई अन्य स्वतंत्र कंपनी बेहतर बोली लगाती या न लगा पाती।

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पारदर्शिता और निष्पक्षता पर सवाल

यह मामला दिखाता है कि किस तरह से प्रभावशाली लोग कानूनी संस्थाओं का उपयोग करके सार्वजनिक परियोजनाओं में अपने लाभ के लिए हेरफेर कर सकते हैं। भले ही सरकार के अधिकारियों ने इसे "असामान्य नहीं" बताया हो, लेकिन यह स्पष्ट रूप से एक संदेहास्पद प्रक्रिया है जो सार्वजनिक संसाधनों के दुरुपयोग की ओर इशारा करती है। यदि निविदा प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं होती, तो सार्वजनिक धन का सही मूल्य नहीं मिल पाता और योग्य लेकिन कम प्रभावशाली कंपनियों को अवसर नहीं मिलता।


सरकार का जवाब: 'असामान्य नहीं'

जब इस मामले में उत्तराखंड पर्यटन विभाग से सवाल पूछा गया, तो उप निदेशक अमित लोहानी ने कहा कि यह "कोई असामान्य बात नहीं" है कि कुछ कंपनियों की अन्य कंपनियों में हिस्सेदारी हो। उन्होंने कहा कि निविदा खुली थी और कोई भी इसमें भाग ले सकता था। उन्होंने यह भी दावा किया कि सरकार ने इस क्षेत्र से पिछले दो वर्षों में जीएसटी के रूप में 5 करोड़ रुपये से अधिक राजस्व प्राप्त किया है।

निविदा प्रक्रिया के दौरान UTDB के अतिरिक्त सीईओ (एडवेंचर स्पोर्ट्स) रहे कर्नल अश्विनी पुंडीर ने भी मिलीभगत के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि ये कंपनियां "स्वतंत्र संस्थाएं" हैं और विभाग कंपनियों की पृष्ठभूमि की "चुड़ैल खोज" नहीं करता है। उन्होंने कहा कि सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को ही टेंडर दिया जाता है।

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एक 'पायलट प्रोजेक्ट' से 15 साल के टेंडर तक

चौंकाने वाली बात यह है कि जुलाई 2022 में, कर्नल पुंडीर ने तत्कालीन पर्यटन सचिव सचिन कुर्वे को लिखा था कि जॉर्ज एवरेस्ट एस्टेट प्रोजेक्ट को राजस एयरोस्पोर्ट्स को एक साल के लिए 'पायलट आधार' पर दिया जाए। हालांकि, कुछ महीने बाद, दिसंबर 2022 में, विभाग ने 15 साल की अवधि के लिए टेंडर जारी करने का फैसला किया, जिसे 15 साल और बढ़ाया जा सकता था।

यह भी सामने आया है कि उत्तराखंड सरकार ने राजस को अन्य प्रमुख परियोजनाओं में शामिल करने के लिए भी जोर दिया है। अप्रैल में, सचिन कुर्वे, जो तब पर्यटन और नागरिक उड्डयन सचिव दोनों थे, ने महानिदेशक नागरिक उड्डयन (DGCA) को चार एयर सफारी परियोजनाओं को संचालित करने के लिए राजस के आवेदन पर "अनुकूल विचार" करने की सिफारिश की थी।

पतंजलि का रुख

पतंजलि के एक प्रवक्ता ने इस बात की पुष्टि की है कि कंपनी राजस एयरोस्पोर्ट्स में सीधे तौर पर शामिल है। वहीं, राजस एयरोस्पोर्ट्स के प्रवक्ता ने मिलीभगत के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि 

निवेशक द्वारा निष्क्रिय शेयरधारिता को मिलीभगत से जोड़ना तथ्यात्मक रूप से गलत और भ्रामक है।" उन्होंने दावा किया कि जॉर्ज एवरेस्ट एस्टेट प्रोजेक्ट को "पारदर्शी प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया के माध्यम से सम्मानित किया गया था।

यह पूरा मामला सरकारी निविदा प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही पर बड़े सवाल खड़ा करता है। क्या वाकई यह एक "असामान्य" मामला नहीं है, या फिर यह नियमों के खुले उल्लंघन का एक और उदाहरण है, जहां कुछ प्रभावशाली लोगों को विशेष लाभ दिया जाता है? यह जांच जारी है।

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निष्कर्ष

यह पूरा मामला उत्तराखंड की सरकारों की नीति और सरकारी टेंडर प्रक्रिया की पारदर्शिता पर बड़े सवाल खड़े करता है। आरोप है कि सारा खेल केंद्रित तौर पर एक ही गुट और उनके सहयोगियों को बेमिसाल ज़मीनें और टेंडर दिलाने का है, जिससे राज्य के राजस्व और युवाओं के रोजगार दोनों को भारी नुकसान है। रिपोर्ट में आगे, केंद्रीय जांच एजेंसियों के संज्ञान की भी उम्मीद जताई गई है, लेकिन अब तक कोई निर्णायक कार्रवाई होती नहीं दिख रही।

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