महाभारत में संजय कौन थे? युद्ध के बाद कैसे बीता था उनका जीवन

महाभारत में संजय कौन थे? युद्ध के बाद कैसा बीता उनका जीवन, कैसे मिली दिव्य दृष्टि और क्यों लिया संन्यास? पढ़ें सम्पूर्ण कहानी हमारे इस लेख में ..
महाभारत में संजय कौन थे? युद्ध के बाद कैसे बीता था उनका जीवन

हम लोग हमेशा महाभारत में संजय की चर्चा करते हैं, लेकिन वास्तविकता अनुसार महाभारत में संजय कौन थे? संजय ने उस युद्ध का सजीव वर्णन/चित्रण धृतराष्ट्र को सुनाने के लिए विशेष दिव्य दृष्टि मिली थी. जिससे न केवल युद्ध क्षेत्र दिखता था अपितु रणनीतियाँ और प्रत्युतरों  को भी आसानी पूर्वक समझ जाते थे। 

महाभारत में संजय कौन थे?

महाभारत में संजय, एक महान दृष्टि मान थे, जो कि कुरुवंश के राजा धृतराष्ट्र के सारथी थे। वे दृष्टिहीन थे, लेकिन उन्हें दृष्टि प्रदान करने वाली एक अद्भुत शक्ति गुरु आशीष के रूप में मिली थी। संजय के कुल और वंश के बारे में महाभारत में स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं है, लेकिन उनका संबंध गंधर्व कुल से बताया जाता है।

संजय को उनकी दिव्य दृष्टि गुरु वेद व्यास की कृपा से मिली थी। वेद व्यास कुरुवंश के कुल देवता थे और वे धृतराष्ट्र के संरक्षक भी थे। एक कथा के अनुसार, संजय जब गुरु वेद व्यास की सेवा कर रहे थे, तो उन्हें उनके दिव्य दृष्टि का वरदान मिला था।

ऐसी मान्यता है कि संजय को उनकी दिव्य दृष्टि अंधे होने के बाद भी प्राप्त हुई थी। गुरु वेद व्यास ने उनकी निष्ठा और सेवा से प्रभावित होकर उन्हें यह शक्ति प्रदान की थी ताकि वे धृतराष्ट्र को युद्ध का वर्णन कर सकें।

संजय के बारे में महत्वपूर्ण बात यह है कि वे दृष्टिहीन होते हुए भी, युद्ध में घटित होने वाली हर घटना को अत्यंत सटीकता और भावना के साथ वर्णन करते थे। उनकी दिव्य दृष्टि न केवल युद्ध के मैदान में घटित घटनाओं को दिखाती थी, बल्कि युद्ध के हर पहलू को उनके सामने प्रकट करती थी।


संजय महर्षि वेद व्यास के शिष्य थे. वो धृतराष्ट्र की राजसभा में शामिल थे. राजा धृतराष्ट्र उनका सम्मान करते थे. संजय विद्वान गावाल्गण नामक सूत के पुत्र थे और जाति से बुनकर.


हमारे पौराणिक ग्रंथ और महाभारत की कहानियां बताती हैं कि संजय बेहद विनम्र और धार्मिक स्वभाव के थे. देश के पहली और एकमात्र ऑनलाइन देसी एनसाइक्लोपीडिया 'भारत कोश' में भी संजय के बारे में विस्तार से बताया गया है.

व्यवहार से कोमल थे, पर बोलते थे खरी-खरी बातें 

महाभारत में संजय को राजा धृतराष्ट्र ने युद्ध से ठीक पहले पांडवों के पास बातचीत करने के लिए भेजा था।  वहां से आकर उन्होंने धृतराष्ट्र को युधिष्ठिर का संदेश सुनाया था। संजय श्रीकृष्ण के परम भक्त थे।  बेशक वो धृतराष्ट्र के मंत्री थे किन्तु धर्मज्ञ थे।  इसलिए पाण्डवों के प्रति सहानुभूति रखते थे. वह भी धृतराष्ट्र और उनके पुत्रों अधर्म से रोकने के लिये कड़े से कड़े वचन कहने में हिचकते नहीं थे.


अक्सर धृतराष्ट्र उनकी बातों पर क्षुब्ध भी हो जाते थे

संजय हमेशा राजा को समय-समय पर सलाह देते रहते थे. जब पांडव दूसरी बार जुआ में हारकर 13 साल के लिए वनवास में गए तो संजय ने धृतराष्ट्र को चेतावनी दी थी कि 'हे राजन! कुरु वंश का समूल नाश तो पक्का है लेकिन साथ में निरीह प्रजा भी नाहक मारी जाएगी. हालांकि धृतराष्ट्र उनकी स्पष्ट-वादिता पर अक्सर क्षुब्ध भी हो जाते थे.


महल में बैठकर धृतराष्ट्र को सुनाते थे युद्ध का हाल

जब ये पक्का हो गया कि युद्ध को टाला नहीं जा सकता तब महर्षि वेदव्यास ने  संजय को दिव्य दृष्टि प्राप्त थी. ताकि वो युद्ध-क्षेत्र की सारी बातों को महल में बैठकर ही देख लें और उसका हाल धृतराष्ट्र को सुनाएं. इसके बाद संजय ने नेत्रहीन धृतराष्ट्र को महाभारत-युद्ध का हर अंश सुनाया. ये भी कहा जा सकता है कि वह हमारे देश के सबसे पहले कमेंटेटर भी थे.

संजय को दिव्यदृष्टि प्रदान करते हुये वेदव्यास जी
संजय को दिव्यदृष्टि प्रदान करते हुये वेदव्यास जी | Source


संजय के बारे में कहा जाता है कि वो यदा-कदा युद्ध में भी शामिल होते थे. युद्ध के बाद  महर्षि व्यास की दी हुई दिव्य दृष्टि भी नष्ट हो गई. श्री कृष्ण का विराट स्वरूप, जो केवल अर्जुन को ही दिखाई दे रहा था, संजय ने भी उसे दिव्य दृष्टि से देखा.


ऐसा कैसे हो गया था

संजय को दिव्य दृष्टि मिलने का कोई वैज्ञानिक आधार महाभारत या बाद के ग्रंथों में नहीं मिलता. इसे महर्षि वेदव्यास का चमत्कार ही माना जाता है. गीता पर कालांतर में लिखी गई कई टीकाओं में इस विषय पर कोई ठोस समाधान नहीं दिए गए.


युद्ध के बाद संन्यास ले लिया

महाभारत युद्ध के बाद कई सालों तक संजय युधिष्ठिर के राज्य में रहे. इसके बाद वो धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती के साथ संन्यास लेकर चले गए. पौराणिक ग्रंथ कहते हैं कि वो धृतराष्ट्र की मृत्यु के बाद हिमालय चले गए.


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