देहरादून: सोमवार को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जब बजट का पिटारा खोलेंगी, तो देवभूमि उत्तराखंड की निगाहें विशेष रूप से टिकी होंगी। भौगोलिक चुनौतियों और पर्यावरणीय जिम्मेदारियों के अथाह बोझ तले दबे इस पहाड़ी राज्य को 'ग्रीन बोनस' मिलने की प्रबल उम्मीद है, जो इसकी नियति बदल सकता है। पड़ोसी मुल्कों से सीमा पर बढ़ते तनाव के बीच, केंद्र सरकार का सीमांत क्षेत्रों के विकास पर बढ़ता फोकस भी उत्तराखंड के लिए एक नई सुबह का संदेश ला सकता है।
पलायन पर लगेगी लगाम, स्वास्थ्य को मिलेगा संजीवनी बूटी?
यदि सीमांत क्षेत्रों के विकास को प्राथमिकता मिलती है, तो यह उत्तराखंड के लिए पलायन के 'मर्ज' पर सीधा प्रहार होगा। कोरोना महामारी से मिले कड़वे सबक के बाद, स्वास्थ्य क्षेत्र में बड़ी और नई घोषणाओं की उम्मीदें भी आसमान छू रही हैं।
ऐसा होने पर उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्य को विशेष लाभ मिलेगा, जहां प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य खर्च की दर अभी भी अन्य राज्यों की तुलना में काफी कम है।
पिछले दिनों उत्तराखंड ने वित्त मंत्री के समक्ष अपनी आशाओं का पिटारा खोल दिया था, जिसकी झलक बजट में देखने को मिल सकती है। शासकीय प्रवक्ता मदन कौशिक ने भी केंद्रीय बजट से कई बड़ी उम्मीदें जताई हैं।
बजट से उत्तराखंड की मुख्य उम्मीदें: एक विस्तृत नज़र
उत्तराखंड ने केंद्र सरकार से कई महत्वपूर्ण मांगें की हैं, जो राज्य के विकास और आम जनता के जीवन में बड़ा बदलाव ला सकती हैं:
हर गांव तक सड़क का सपना: उत्तराखंड चाहता है कि प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत आबादी के मानक में ढील दी जाए। वर्तमान में 250 की आबादी वाले गांवों को ही सड़क से जोड़ा जाता है, लेकिन उत्तराखंड इसे घटाकर 150 की आबादी करने की मांग कर रहा है, जिससे राज्य के अधिकांश दूरस्थ गांव भी सड़क नेटवर्क से जुड़ सकें।
आयुष कॉरिडोर: परंपरा और समृद्धि का संगम: 71% वन क्षेत्र से आच्छादित उत्तराखंड जड़ी-बूटियों और औषधीय पौधों का अकूत खजाना है। राज्य ने केंद्र से आध्यात्मिक इको-जोन और आयुष-जोन के निर्माण के लिए वित्तीय सहायता की मांग की है, जो आयुर्वेद की परंपरा को पुनर्जीवित कर आर्थिक समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करेगा।
सीमांत क्षेत्रों का कायाकल्प: चीन, नेपाल और तिब्बत से सटी सीमाओं पर बढ़ते तनाव के बीच, उत्तराखंड ने सीमांत क्षेत्रों के विकास के लिए अधिक धनराशि की मांग की है। यह धनराशि अवस्थापना कार्यों के साथ-साथ आजीविका आधारित योजनाओं पर खर्च होगी, जिससे तेजी से हो रहे पलायन को रोका जा सके।
मनरेगा और वृद्धावस्था पेंशन में केंद्र का हाथ: उत्तराखंड चाहता है कि वृद्धावस्था पेंशन में केंद्र का योगदान 200 रुपये से बढ़कर 1000 रुपये प्रति लाभार्थी हो। साथ ही, मनरेगा योजना में श्रम और सामग्री का अनुपात 60:40 से बदलकर 50:50 करने की मांग की गई है, जिससे स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन को बढ़ावा मिले।
केंद्र पोषित योजनाओं में बढ़े हिस्सा: राज्य सरकार की उम्मीद है कि केंद्र पोषित योजनाओं में केंद्र अपनी भागीदारी बढ़ाएगा, जिससे विकास कार्यों और कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने में आसानी होगी।
अन्य महत्वपूर्ण मांगें:
- ग्रामीण आवास: दो लाख का सपना: प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में घर बनाने के लिए मिलने वाली धनराशि को 1.30 लाख से बढ़ाकर दो लाख रुपये किया जाए।
- स्वरोजगार को मिले पंख: स्वरोजगार के लिए दिए जाने वाले ऋण को दो लाख से बढ़ाकर तीन लाख रुपये करने की मांग की गई है, जिससे अधिक से अधिक युवा अपना व्यवसाय शुरू कर सकें।
- रोपवे परियोजनाएं: पर्यटन को नई उड़ान: गौरीकुंड-केदारनाथ, गोविंदघाट-हेमकुंड और नैनीताल रोपवे परियोजनाओं को केंद्रीय योजना में शामिल कर वित्तीय सहायता देने की मांग की गई है, जिससे पर्यटन को बढ़ावा मिले।
- छोटे उद्योगों को संजीवनी: छोटे उद्योगों की मदद के लिए रूरल बिजनेस इनक्यूबेटर की स्थापना को केंद्र से वित्तीय मदद की उम्मीद है।
- ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में बढ़ोतरी: ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के तहत सहायता राशि को 35% से बढ़ाकर 50% करने की मांग की गई है, जिससे स्वच्छ भारत अभियान को गति मिले।
अमित सिंह नेगी, सचिव वित्त के अनुसार, "हम केंद्र पोषित योजनाओं में धनराशि बढ़ोतरी की उम्मीद कर रहे हैं। ऐसी संभावना है कि केंद्रीय बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र के बजट को बढ़ाया जाए। ऐसा होने पर इसका लाभ राज्यों को भी होगा।"
क्या निर्मला सीतारमण का आगामी बजट उत्तराखंड के इन सपनों को पंख देगा और 'पहाड़' की तकदीर बदलेगा? सोमवार का दिन इस सवाल का जवाब लेकर आएगा।
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