वरुणावत पर्वत पर स्थित विमलेश्वर महादेव मंदिर के संबंध में मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से यहां प्रार्थना करते हैं भगवान शिव उनकी सारी मनोकामना दूर पूरी करते हैं।
इतिहास
स्कंदपुराण में मान्यता है कि भगवान परशुराम ने अपना क्रोध शांत करने के लिए वरुणावत पर्वत के शिखर पर भगवान शिव की पूजा अर्चना की थी। भगवान शिव उनकी पूजा से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए थे। तब भगवान परशुराम का क्रोध शांत हुआ। इसके लिए परशुराम ने भगवान शिव यहां पर शिवङ्क्षलग के रुप में विराजमान होने की बात कही। तब से लेकर आज तक आसपास के ग्रामीण इस स्थान को विमलेश्वर महादेव के नाम से भी पूजते हैं।
कैसे पहुंचे
ऋषिकेश से उत्तरकाशी की दूरी करीब 170 किमी है। श्रद्धालु देहरादून और ऋषिकेश से बस में सवार होकर उत्तरकाशी के बस अड्डा पहुंचेंगे। फिर श्रद्धालु यहां से टैक्सी, मैक्स और निजी वाहनों में सवार होकर करीब 12 किमी दूर वरुणावत के शीर्ष पर पहुंचेंगे। वाहन से उतरने के बाद मात्र 50 मीटर की पैदल दूरी तय कर आप विमलेश्वर महादेव के दर्शन करेंगे।
पंडित दिवाकर नैथानी कहते हैं, आदिकाल से यहां भगवान शिव का पौराणिक शिवलिंग है। सावन मास में श्रद्धालु इसी शिवलिंग में दुग्धाभिषेक और जलाभिषेक कर भगवान शिव की पूजा अर्चना करते हैं। सावन मास में निसंतान दंपती के पूजा करने से भगवान शिव उनकी मनोकामना पूरी करते हैं।
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मंदिर के सेवक प्रद्युम्न नौटियाल बताते हैं कि सावन मास में स्थानीय ग्रामीण और कांवड़ यात्री यहां भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। चीड़ और देवदार के वृक्षों के बीच विमलेश्वर महादेव का यहां अदभुत मंदिर है।
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