उत्तराखंड : सामुदायिक रेडियो स्थापित करने पर अब दस लाख की सहायता देगी सरकार, शासन ने जारी किया आदेश

Ankit Mamgain

 

सामुदायिक रेडियो लगाने पर राज्य सरकार अब दस लाख रुपये की सहायता
सामुदायिक रेडियो लगाने पर राज्य सरकार अब दस लाख रुपये की सहायता

प्रदेश में सामुदायिक रेडियो लगाने पर राज्य सरकार अब दस लाख रुपये की सहायता देगी। इसके साथ ही तीन साल तक हर साल दो लाख रुपये संचालन के लिए दिए जाएंगे। 



सामुदायिक रेडियो को प्रदेश सरकार पहले से ही उपयोगी मानती रही है। पहले सरकार ने सामुदायिक रेडियो को लगाने पर सात लाख रुपये देना स्वीकार किया था। इसके बावजूद सरकार को न के बराबर प्रस्ताव मिले। इसके बाद यह योजना ठंडे बस्ते में चली गई। अब प्रदेश सरकार ने सहायता राशि में सीधे तीन लाख रुपये का इजाफा कर दिया है। इसके साथ ही विश्वविद्यालयों सहित अन्य शिक्षण संस्थाओं से भी इसके लिए प्रस्ताव मांगे गए हैं। 



आपदा प्रबंधन सचिव एसए मुरुगेशन की ओर से जारी आदेश में सभी जिलाधिकारियों से अपने जिलों में गैर सरकारी संस्थाओं तथा अन्य  संगठनों से रेडियो केंद्र की स्थापना के लिए चार जून 2021 तक राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को प्रस्ताव उपलब्ध कराने को कहा गया है। 


इसके अतिरिक्त राज्य के सरकारी विश्वविद्यालयों तथा अन्य स्वायत्तशासी संस्थाओं से भी प्रस्ताव मांगे गए हैं। आपदा प्रबंधन मंत्रालय का मानना है कि राज्य के सरकारी  विश्वविद्यालय तथा अन्य स्वायत्तशासी शिक्षण संस्थान इस कार्य को बेहतर तरीके से कर सकते हैं। उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय तथा पंतनगर विश्वविद्यालय की ओर से सामुदायिक रेडियो केंद्रों का संचालन पहले से ही किया जा रहा है।


विभाग के स्तर पर लेटलतीफी के कारण हुई देर : धन सिंह 


आपदा प्रबंधन राज्यमंत्री डॉ. धन सिंह रावत के मुताबिक सभी जानते हैं कि सामुदायिक रेडियो आपदा के समय, लोगों को साथ जोड़ कर जानकारी आपस में साझा करने आदि के मामले में बेहद उपयोगी साबित हुए हैं। पहले भी इस योजना के लिए सरकार ने कोशिश की थी लेकिन विभाग के स्तर पर लेटलतीफी के कारण देर हुई। अब सरकार इस योजना को प्राथमिकता के आधार पर लागू करेगी। 


स्थानीय लोगों की आवाज होता है सामुदायिक रेडियो


सामुदायिक रेडियो बिना हानि लाभ के स्थानीय स्तर पर स्थानीय लोगों को जोड़ते हुए संचालित किए जाने वाले रेडियो केंद्र होते हैं। केंद्र सरकार के स्तर पर इसका लाइसेंस जारी किया जाता है। कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले भी अधिकतर स्थानीय लोग ही होते हैं।

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