स्मृति शेष: सुंदरलाल बहुगुणा ने तब जिन सागौन के पेड़ों को दी थी जिंदगी, अब वही दे रहे श्रद्धांजलि

Ankit Mamgain

सुंदरलाल बहुगुणा - फोटो : सोशल मीडिया
सुंदरलाल बहुगुणा - फोटो : सोशल मीडिया

 20 साल पहले जिन सागौन के पेड़ों पर चल रहीं आरियों को रोककर पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा ने जिंदगी दी थी, आज आसमान की ऊंचाई छू रहे वही पेड़ उनके निधन पर श्रद्धांजलि दे रहे हैं।



बहुगुणा के साथ प्रकृति प्रेम और दिल का रिश्ता रखने वाले आईआईटी के पूर्व प्रोफेसर दिवंगत महेंद्र पंत और उनके टेक्नीशियन अमीर अहमद के साथ बीते जमाने की ढेरों यादें जुड़ी हैं।



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आईआईटी रुड़की के इलेक्ट्रिकल डिपार्टमेंट में बतौर टेक्नीशियन काम करने वाले रुड़की निवासी अमीर अहमद बताते हैं कि उनके विभाग में प्रोफेसर रहे महेंद्र पंत को प्रकृति से बेहद लगाव था। उनके कहने पर कई बार पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा से मिलने, उनसे बात करने और उनके विचार जानने का सौभाग्य प्राप्त हुआ करीब 20 साल पहले रुड़की में एसडीएम चौराहे से आईआईटी की ओर जाने वाली रोड पर खड़े पेड़ों को काटने के आदेश दिए गए थे।


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कुछ पेड़ों की टहनियों पर आरियां चलनी शुरू हो गई थीं। इस पर दिवंगत महेंद्र पंत ने टिहरी जिले में स्थित बहुगुणा के आश्रम में पेड़ों की फोटो और अन्य साक्ष्य भेजे। उन्होंने टेलीफोन के जरिये तत्कालीन केंद्रीय मंत्री कमलनाथ को यह बात बताई कि रुड़की में हरे-भरे पेड़ काटे जा रहे हैं। इसके बाद उन्हें चिट्ठी भी लिखी। तुरंत बाद पेड़ कटान के आदेश पर रोक लग गई। पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा की बदौलत आज इस रोड पर सभी सागौन के पेड़ जिंदा हैं। 

केंद्रीय मंत्री को चिट्ठी लिखी थी

अमीर अहमद ने बताया कि प्रोफेसर महेंद्र पंत के कहने पर वे ऋषिकेश से बस पकड़कर उनके आश्रम पहुंचे। रात को वहीं रुके और पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा से बातें करने का मौका मिला। जब उन्होंने पेड़ों की फोटो और अन्य साक्ष्य सौंपे तो उन्होंने पूछा था कि पेड़ किस चीज से काटे जा रहे हैं।


जब अमीर अहमद ने बताया कि कुल्हाड़ी और आरी से पेड़ काटे जा रहे हैं तो उन्होंने पूछा कि तुमने देखा था कि पेड़ पर किस तरह से आरियां चल रही हैं। उन्होंने हां में जवाब दिया तो बहुगुणा ने केंद्रीय मंत्री को चिट्ठी लिखी। अगले दिन सुबह फोन पर उनसे बात भी की।


अमीर अहमद बताते हैं कि प्रोफेसर महेंद्र पंत होली की छुट्टियों में छात्रों को उत्तरकाशी, जोशीमठ, हर्षिल आदि जगहों पर ले जाते थे और कुदाल से चट्टानें काटकर उनमें पेड़ लगाते थे, ताकि भूस्खलन न हो सके। इसी दौरान उनकी मुलाकात पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा से होती थी।

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